दुर्लभ पोम्पे रोग की मरीज़ ने दिया स्वस्थ बच्ची को जन्मः भारत में पहला ऐसा मामला
जयपुर 09 अक्टूबर 2020 -दुर्लभ एवं आनुवंशिक बीमारी- पोम्पे रोग- के मरीज़ों और चिकित्सकों के बीच उम्मीद की नई लहर दौड़ गई, जब पिछले सप्ताह बुधवार को कोची को अमृता अस्पताल में 24 वर्षीय मरीज़ ने स्वस्थ बच्चे को जन्म दिया। कोल्लम से आई इस मरीज़ की देखभाल करने वाले डाॅक्टरों ने बताया कि मां और बच्चा दोनों ठीक हैं।
पोम्पे रोग एक लाइसोसोमल स्टोरेज विकार है। यह एक गंभीर बीमारी है जो जीएए जीन में असमान्यता / रोगजनक उत्परिवर्तन के कारण होती है। इस दुर्लभ रोग के मरीज़ों की मांसपेशियां कमज़ोर होती हैं और उनमें कई गंभीर जटिलताएं हो सकती हैं, अक्सर इन्हें लम्बे समय तक विशेष उपचार तथा एंज़ाइम रिप्लेसमेन्ट थेरेपी के द्वारा प्रबंधन की आवश्यकता होती है।
अमृता अस्पताल में पीडिएट्रिक जेनेटिक्स की प्रमुख डाॅ शीला नामपूथिरी ने कहा, ‘‘यह भारत में पोम्पे मरीज़ का पहला मामला है जिसमें मरीज़ महिला ने अपनी गर्भावस्था को पूरा कर स्वस्थ बच्चे को जन्म दिया है। यह सिर्फ इसलिए हो सका कि मरीज़ को 6 साल पहले पोम्पे रोग का निदान होने के बाद से इण्डिया चैरिटेबल एक्सेस प्रोग्राम ;प्छब्।च्द्ध के सहयोग से सैनोफी जेनज़ाइम के तहत जीवन रक्षक एंज़ाइम रिप्लेसमेन्ट थेरेपी पर रखा गया था।’‘
‘‘यह मामला इस बात की पुष्टि करता है कि पोम्पे जैसी दुर्लभ बीमारियों के मरीज़ भी समय पर जीवन रक्षक उपचार मिलने से स्वस्थ जीवन जी सकते हैं।’’ डाॅ शीला ने खुशी ज़ाहिर करते हुए बताया कि महिला ने स्वस्थ बच्ची को जन्म दिया है, जिसका वज़न जन्म के समय 2.8 किलो था, बच्ची में कोई दोषपूर्ण जीन नहीं है, उसे पोम्पे रोग नहीं है।
अमृता अस्पताल में आब्स्टैट्रिक्स एवं गायनेकोलोजी की प्रमुख डाॅ राधामनी के. ने अपने डाॅक्टरों और पैरामेडिक्स टीम के साथ बताया कि पोम्पे की मरीज़ में उच्च जोखिम वाली गर्भावस्था के बावजूद स्वस्थ बच्चे का जन्म (इलेक्टिव लोवर सेगमेन्ट सीज़ेरियन सर्जरी के द्वारा) अपने आप में एक केस स्टडी है। ‘‘महिला 37 सप्ताह की गर्भावस्था के दौरान ईआरटी पर थी और बच्चे के जन्म के बाद भी उनका उपचार जारी रहेगा।’’ उन्होंने बताया कि अस्पताल की विशेषज्ञ टीम इस पूरी अवधि के दौरान महिला पर बारीकी से निगरानी रखे हुए थी।
देश भर में दुर्लभ रोगों से लड़ाईके लिए स्थापित मरीज़ एडवोकेसी समूह लाइसोसोमल स्टोरेज डिसआॅर्डर सपोर्ट सोसाइटी के केरल राज्य के सह-समन्वयक मनोज मंगहाट के अनुसार, ‘‘न केवल केरल में बल्कि देश भर में दुर्लभ रोगों के मरीज़ों के लिए उम्मीद की एक नहीं किरण उत्पन्न हुई हैं साफ है कि समय पर उचित उपचार के द्वारा दुर्लभ रोगों के मरीज़ भी सामान्य जीवन जी सकते हैं। ‘‘केरल राज्य की सरकार की हाल ही में पोम्पे बीमारी से पीड़ित दो बच्चों में इन्फ्यूज़न थेरेपी शुरू की थी। हम राज्य सरकारों और केन्द्र से अपील करते हैं कि इन मरीज़ों के लिए स्थायी वित्तपोषण प्रणाली का निर्माण किया जाए।’’
‘‘हमें उम्मीद है कि केरल सरकार अब राज्य में सभी एलएसडी मरीज़ों के सहयोग के लिए एक कोष स्थापित करेगी।’’ उन्होंने बताया कि दुर्लभ रोगों पर राष्ट्रीय नीति 2020 में देरी तथा स्थायी वित्तपोषण प्रणाली की कमी एलएसडी जैसे तीसरे समूह के विकार से पीड़ित मरीज़ों और उनके परिवारों के लिए तनाव का कारण बन सकती है। इसी देरी के बीच कई मरीज़ अपना जीवन खो चुके हैं।
सेनोफी जेनज़ाइम में भारत के जनरल मैनेजर अनिल रैना ने बताया, ‘‘अपने चैरिटेबल एक्सेस प्रोग्राम के माध्यम से हम चार लाइसोसोमल स्टोरेज विकारों – गोशे रोग, पोम्पे रोग, फैबरी रोग और एमपीएस रोग- के मरीज़ों को निःशुल्क दवाएं मुहैया कराते हैं। भारत में 1999 में पहले मरीज़ को निःशुल्क ईआरटी दी गई और अब तक इस प्रोग्राम के तहत 130 से अधिक मरीज़ निःशुल्क ईआरटी से लाभान्वित हो रहे हैं।’’
‘‘ये दुर्लभ रोग बच्चों को प्रभावित करते हैं, जिसके परिणाम गंभीर हो सकते हैं, जिसमें मरीज़ किसी न किसी तरह की अपंगता का शिकार हो जाता है। रोगों की दुर्लभता को देखते हुए, इनका निदान और उपचार कठिन है और मरीज़ को लम्बे समय तक निदान, इलाज, जांच आदि की प्रक्रिया जारी रखनी होती है।’’ उन्होंने बताया कि समय पर निदान और आर्थिक सहयोग इन आनुवंशिक मरीज़ों के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है।
प्छब्।च् केे बारे में
सैनोफी का इंडिया चैरिटेबल एक्सेस प्रोग्राम ;प्छब्।च्द्ध, सैनोफी जेनज़ाईम के विश्वस्तरीय मानवतावादी प्रोग्राम का एक भाग है, जिसके माध्यम से यह भारत में लाइसोसमल स्टोरेज विकारों (एलएसडी)- गोशे, पोम्पे, फैब्री और एमपीएस टाईप 1- से पीड़ित मरीज़ों को निःशुल्क उपचार उपलब्ध कराता है।
भारत में मानवतावादी प्रोग्राम की शुरूआत 1999 में हुई, हालांकि सेनोफी जेनज़ाइम की स्थानीय मौजूदगी नहीं थी। 2019 में भारत में सैनोफी जेनज़ाइम को 20 साल पूरे हो गए।
दुनिया भर के 60 देशों में 700 से अधिक मरीज़ मानवतावाती प्रोग्राम के साथ जुड़े हैं, जिनमें से 130 से अधिक मरीज़ भारत से हैं।
सैनोफी जेनज़ाइम एक मजबूत साझेदार बनने और मरीज़ों के लिए उम्मीद की किरण उत्पन्न करने के लिए प्रतिबद्ध है।