माहवारी की समस्या के बावजूद मिला मातृत्व सुख अत्याधुनिक तकनीकों से इन्दिरा आईवीएफ अलवर में हुआ उपचार
अलवर, 06 अक्टूबर, 2023: निःसंतानता से प्रभावित ज्यादातर महिलाओं को यह लगता है कि वे कभी माता नहीं बन पाएंगी लेकिन आधुनिक तकनीकों के इस युग में सही समय पर एक्सपर्ट राय और उपचार लिया जाए तो मुष्किल समस्याओं में भी संतान प्राप्ति हो सकती है । ऐसा ही एक मामला अलवर में सामने आया है जहां 27 वर्षीय सलोनी (बदला हुआ नाम) को कभी माहवारी नहीं आने (एमेनोरिया) के बावजूद संतान सुख प्राप्त हुआ है। सलोनी को पहली बार महावारी भी 15 वर्ष की आयु में डाॅक्टर द्वारा दवाइयां देने पर आयी थी और इसके बाद कभी प्राकृतिक रूप से पीरियड्स नहीं आए । इस मामले में प्राकृतिक रूप से गर्भधारण में की संभावना बहुत कम होती है। दम्पती ने काफी प्रयासों के बाद असफल होने पर शहर में स्थित इन्दिरा आईवीएफ हाॅस्पिटल में सम्पर्क किया, जहां आधुनिक आईवीएफ उपचार से सफलता मिल गयी।इन्दिरा आईवीएफ अलवर की सेंटर हेड डाॅ. चारू जौहरी ने बताया कि सेंटर में अल्ट्रासाउंड जांच करने पर गर्भाशय छोटा दिखा और हार्मोन का स्तर बहुत कम पाया गया, जो हाइपो-हाइपो से संबंधित एक हार्मोनल स्थिति है जो हर महीने ओव्यूलेशन या अंडों के मासिक रिलीज को रोकती है क्योंकि महिला के अंडाशय में अंडे विकसित होने में असमर्थ होते हैं।
डाॅ. जौहरी ने बताया कि “हाइपो-हाइपो एक दुर्लभ लेकिन इलाज योग्य स्थिति है जो निःसंतानता का कारण बन सकती है। उचित परामर्श और समय पर उपचार के साथ, हाइपो-हाइपो वाली कई महिलाएं अपने स्वयं के अंडों से गर्भधारण करने में सक्षम होती हैं। उपचार प्रोटोकाॅल के तहत पहले गर्भाशय के आकार को बढ़ाकर सामान्य करने के लिए हार्मोनल रिप्लेसमेंट ट्रीटमेंट दिया गया इसके बाद ओवरी को स्टीमुलेट और अंडे विकसित करने के लिए हार्मोनल इंजेक्शन दिए गए। इस केस में स्पेषल स्टीमुलेषन प्रोटोकाॅल फोलो किया गया क्योंकि महिला में हार्मोन की कमी थी। मरीज को 14 इंजेक्शन देने के बाद अंडे तैयार हो गए और निकाल लिये गये, जिन्हें लैब में आईवीएफ प्रोसेस से निषेचित करवाया गया। इससे बने अच्छी गुणवत्ता वाले दो ब्लास्टोसिस्ट भ्रूणों को महिला के गर्भाषय में ट्रांसफर किया गया । सफलतापूर्वक गर्भावस्था पूरी करने के बाद मरीज ने एक स्वस्थ संतान को जन्म दिया।
भारत में रिप्रोडक्टिव आयु की सिर्फ 2 प्रतिषत महिलाओं में हाइपो-हाइपो के केस सामने आते हैं। हाइपो-हाइपो से प्रभावित महिलाओं को बहुत अधिक सामाजिक दबाव सहन करना पड़ता है। इन महिलाओं के लिए विषेष भावनात्मक देखभाल और उचित परामर्श आवष्यक होता है। सही मार्गदषन से हाइपो-हाइपो वाली महिलाएं चुनौतियों पर नियन्त्रण पाकर माता बनने का सपना पूरा कर सकती हैं।
सलोनी की मातृत्व की यात्रा आईवीएफ की परिवर्तनकारी क्षमता और विषेष देखभाल से सफलता प्राप्त करने का उदाहरण प्रस्तुत करती है। इंदिरा आईवीएफ, माता-पिता बनने के इच्छा रखने वाले व्यक्तियों और दम्पतियों को अत्याधुनिक फर्टिलिटी उपचार और श्रेष्ठ सहायता प्रदान करने के लिए समर्पित है।
डाॅ. जौहरी ने बताया कि “हाइपो-हाइपो एक दुर्लभ लेकिन इलाज योग्य स्थिति है जो निःसंतानता का कारण बन सकती है। उचित परामर्श और समय पर उपचार के साथ, हाइपो-हाइपो वाली कई महिलाएं अपने स्वयं के अंडों से गर्भधारण करने में सक्षम होती हैं। उपचार प्रोटोकाॅल के तहत पहले गर्भाशय के आकार को बढ़ाकर सामान्य करने के लिए हार्मोनल रिप्लेसमेंट ट्रीटमेंट दिया गया इसके बाद ओवरी को स्टीमुलेट और अंडे विकसित करने के लिए हार्मोनल इंजेक्शन दिए गए। इस केस में स्पेषल स्टीमुलेषन प्रोटोकाॅल फोलो किया गया क्योंकि महिला में हार्मोन की कमी थी। मरीज को 14 इंजेक्शन देने के बाद अंडे तैयार हो गए और निकाल लिये गये, जिन्हें लैब में आईवीएफ प्रोसेस से निषेचित करवाया गया। इससे बने अच्छी गुणवत्ता वाले दो ब्लास्टोसिस्ट भ्रूणों को महिला के गर्भाषय में ट्रांसफर किया गया । सफलतापूर्वक गर्भावस्था पूरी करने के बाद मरीज ने एक स्वस्थ संतान को जन्म दिया।
भारत में रिप्रोडक्टिव आयु की सिर्फ 2 प्रतिषत महिलाओं में हाइपो-हाइपो के केस सामने आते हैं। हाइपो-हाइपो से प्रभावित महिलाओं को बहुत अधिक सामाजिक दबाव सहन करना पड़ता है। इन महिलाओं के लिए विषेष भावनात्मक देखभाल और उचित परामर्श आवष्यक होता है। सही मार्गदषन से हाइपो-हाइपो वाली महिलाएं चुनौतियों पर नियन्त्रण पाकर माता बनने का सपना पूरा कर सकती हैं।
सलोनी की मातृत्व की यात्रा आईवीएफ की परिवर्तनकारी क्षमता और विषेष देखभाल से सफलता प्राप्त करने का उदाहरण प्रस्तुत करती है। इंदिरा आईवीएफ, माता-पिता बनने के इच्छा रखने वाले व्यक्तियों और दम्पतियों को अत्याधुनिक फर्टिलिटी उपचार और श्रेष्ठ सहायता प्रदान करने के लिए समर्पित है।