समुदाय के लिए कलाः वेदांता सदियों पुरानी लुप्त हो रही परम्पराओं को पुनर्जीवित करने में दे रही योगदान

भारत के धूप से तपते गांवों और प्राचीन पहाड़ियां में धूल से भरी पगडंडियां अपने भीतर सदियों पुरानी कहानियां समेटे हुए हैं, हालांकि इन सब के बीच कला हमेशा सौंदर्य से बढ़कर रही है। यह एक आवाज़, एक पहचान, एक परम्परा है जो पीढ़ियों से परिवारों की विरासत के रूप में चली आ रही है। राजस्थान और उड़ीसा में ढोकरा मेटलवर्क, सौरा पेंटिंग्स, अजरक ब्लॉक प्रिंटिंग और ऐप्लीक एम्ब्रॉयडरी के चार सदी से पुराने शिल्प लम्बे समय से समुदायों को परिभाषित करते रहे हैं। हालांकि इन क्षेत्रों में आधुनिकता के बढ़ने के साथ इनमें से कई कलाएं फीकी पड़ने लगीं। लेकिन तब वेदांता के प्रयासों ने इन शिल्प कलाओं में नई जान फूंक दी और इन्हें सशक्तीकरण एवं प्रत्यास्थता के प्रतीक के रूप में स्थापित किया। वेदांता ने अपने समावेशी सामुदायिक प्रोग्रामों जैसे प्रोजेक्ट आदिकला, उपाया तथा रूमा देवी जैसे बदलावकर्ताओं के साथ साझेदारी के माध्यम से कलाकारों के भविष्य को नया आयाम दिया है। सदियों पुरानी इन परम्पराओं को सुरक्षित रखते हुए इन्हें स्थायी आजीविका में बदल डाला है। आज न सिर्फ ये शिल्प कलाएं बल्कि इनसे जुड़े समुदाय भी फल-फूल रहे हैं। ...